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Kadve Pravachan Quotes in Hindi by Tarun Sagar

मुनि श्री तरुणसागर जी के कड़वे प्रवचन जीवन को निरोग रखने के लिए औषधियों का कार्य करने वाले हैं।
वे एक अनुभवी चिकित्सक हैं,
अध्यात्म के ‘कड़वे प्रवचनों’ में भी एक प्रकार का मधुर रस है।
तभी तो लोग उनको सुनने के लिए आतुर रहते हैं।

tarun sagar ji maharaj pravachan

tarun sagar kadave pravachan

भले ही लड़ लेना-झगड़ लेना,पिट जाना-पीट देना,
मगर बोल-चाल बंद मत करना क्योंकि बोल-चाल के बंद होते ही सुलह के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं।
गुस्सा बुरा नहीं है। गुस्से के बाद आदमी जो वैर पाल लेता है, है वह बुरा है ।
गुस्सा तो बच्चे भी करते हैं मगर बच्चे वैर नहीं पालते ।
वे इधर लड़ते-झगड़ते हैं और उधर अगले ही क्षणफिर एक हो जाते हैं।
कितना अच्छा रहे कि हर कोई बच्चा ही रहे ।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

डॉक्टर और गुरु के सामने झूठ मत बोलिए क्योंकि यह झूठ बहुत महंगा पड़ सकता है।
गुरु के सामने झूठ बोलने से पाप का प्रायश्चित
और डॉक्टर के सामने झूठ बोलने सेरोग का निदान नहीं होगा ।
डॉक्टर और गुरु के सामने एकदम सरल और तरल बनकर पेश हों।
आप कितने ही होशियार क्यों न हों तो भी डॉक्टर
और गुरु के सामने अपनी होशियारी मत दिखाइए, क्योंकि यहां होशियारी बिल्कुल भी काम नहीं आती।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

Kadave Pravchan Quotes in Hindi by Tarun Sagar

लक्ष्मी पूजा के काबिल तो है लेकिन भरोसे के काबिल कतई नहीं है ।
हैलक्ष्मी की पूजा तो करना मगर लक्ष्मी पर भरोसा मत करना
और भगवान की पूजा भले ही मत करना लेकिन भगवान पर भरोसा हर-हाल में रखना ।
दुनिया में भरोसे के काबिल सिर्फ भगवान ही हैं । लक्ष्मी का क्या भरोसा ?
वह तो चंचला है। आज यहां और कल वहां ।
जिस-जिस ने भी इस पर भरोसा किया आखिर में वह रोया है ।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’
kadave pravachan quote in hindi

सत्य का रास्ता कठिन है। इस रास्ते पर हजार चलने की सोचते हैं मगर सौ ही चल पाते हैं।
नौ सौ तो सोचकर ही रह जाते हैं और जो सौ चल देते हैं,
उनमें केवल दस ही पहुँच पाते हैं।
नब्बे तो रास्ते में ही भटक जाते हैं। और जो दस पहुँचते हैं,
उनमें भी सिर्फ एक ही सत्य को उपलब्ध हो पाता है,
नौ फिर भी किनारे पर आकर डूब जाते हैं ।
तभी तो कहते हैं कि सत्य एक है ।
और याद रखें: सत्य परेशान तो हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

tarun sagar ji ke kadve pravachan

मां-बाप की आँखों में दो बार ही आंसू आते हैं ।
एक तो लड़की घर छोड़े तब और दूसरा लड़का मुँह मोड़े तब ।
पत्नी पसंद से मिल सकती है। मगर मां तो पुण्य से ही मिलती है।
इसलिए पसंद से मिलने वाली के लिए पुण्य से मिलने वाली को मत ठुकरा देना ।
जब तू छोटा था तो मां की शय्या गीली रखता था,
अब बड़ा हुआ तो मां की आँख गीली रखता है।
तू कैसा बेटा है ? तूने जब धरती पर पहला सांस लिया, तब मां-बाप तेरे पास थे।
अब तेरा फर्ज है कि तबमाता-पिता जब अंतिम सांस लें,तू उनके पास रहे ।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

पूछा है : शांतिमय जीवन जीने के लिए क्या करें ? कुछ मत करो,
बस काम के समय काम करो और जब काम न कर रहे हो तो आराम करो ।
शाम को दुकान से घर लौटो तो दुकान घर मत लाओ और
सुबह जब घर से दुकान जाओ तो घर को घर पर ही छोड़कर जाओ ।
जहां हो वहां अपनी १००% उपस्थिति दर्ज कराओ ।
आधे-अधूरे मन से कोई भी काम मत करो, इससे काम भी बिगड़ेगा और तनाव भी बढ़ेगा ।
झाडू ही क्यों न लगानी हो, पूरे आनंद से भर कर लगाओ।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

tarun sagar ji maharaj ke pravachan

को ई धर्म बुरा नहीं है, बल्कि सभी धर्मों में कुछ बुरे लोग जरूर हैं
जो अपने स्वार्थों की खातिर धर्म की आड़ में अपने गोरख-धंधे
और नापाक इरादे जाहिर करते रहते हैं। अगर हम इन थोड़े से बुरे लोगों के दिलों को बदल सकें,
उन्हें सही राह पर चला सकें और नेक इंसान बनाकर जीना सिखा सकें
तो यकीनन सच मानिए यह पूरी पृथ्वी स्वर्ग में तब्दील हो जायेगी ।
धर्म मरहम नहीं, बल्कि टॉनिक है।
इसे बाहर मलना नहीं, बल्कि पी जाना है।
कितना बड़ा आश्चर्य है कि हम धर्म के लिए लड़ेंगे-मरेंगे, लेकिन उसे जीयेंगे नहीं ।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

पैसा कमाने के लिए कलेजा चाहिए। मगर दान करने के लिए उससे भी बड़ा कलेजा चाहिए।
दुनिया कहती है कि पैसा तो हाथ का मैल है। मैं पैसे को ऐसी गाली कभी नहीं दूंगा।
जीवन और जगत में पैसे का अपना मूल्य है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।
मगर यह भी सही है कि जीवन में पैसा कुछ हो सकता है, कुछ-कुछ भी हो सकता है,
और बहुत-कुछ भी हो सकता है मगर लिए भी तैयार हो जाते हैं।
‘सब-कुछ’ कभी नहीं हो सकता।
और जो लोग पैसे को ही सब कुछ मान लेते हैं वे पैसे के खातिर अपनी आत्मा को बेचने के

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

tarun sagar ji maharaj ke kadve pravachan

एक क मूर्ख ने दूसरे मूर्ख से कहा : अगर तुम यह बता दो कि मेरी झोली में क्या है ? तो सारे अंडे तुम्हारे ।
और अगर यह बता दो कि गिनती में कितने हैं ? तो आठ के आठ अंडे तुम्हारे।
और अगर तुमने यह बता दिया कि अंडे किस जानवर के हैं ? तो मुर्गी भी तुम्हारी।
दूसरे मूर्ख ने कहा : यार ! कुछ संकेत तो कर । बड़ा जटिल सवाल है।
हमारी जिन्दगी के हर सवाल के जवाब भी हमारी जिन्दगी में छिपे हैं फिर भी हम समझ कहां पाते हैं।

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

दान और पुण्य एकान्त में होना चाहिए।
जैसे तुम स्नान सड़क या चौराहे पर नहीं वरन बंद बाथरूम में करते हो,
वैसे ही दान-पुण्य गुप्त होना चाहिए। पुण्य की किसी को खबर नहीं लगने देना चाहिए,
क्योंकि पुण्य छिपाने से बढ़ता है और बताने से मरता है।
पुण्य बड़ा शर्मीला है। पुण्य और दान छपाकर नहीं, छिपाकर करना चाहिए।
तुम्हारे घर के अंदर कूड़ा-कचरा जमा हो और उसे फेंकना हो, तो क्या तुम इसका अखबार में विज्ञापन करते हो ?

मुनि श्री तरुणसागर- ‘कड़वे प्रवचन’

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Yash K

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