Atal Bihari Vajpayee Poems in (हिंदी)
आज हुम पढ़ने वाले है ‘अटल बिहारी वाजपेयी’ जी की कविताए। यह कविताए ज़िन्दगी की असीम सिख दे जाती है जब भी बी पढता हु मै इन्हे। तो सोचा आप से भी साझा हो जाए ये अटल जी की कविताए तोह बेहतर रहेगा। तोह पेश करते है कुछ बेहतरीन कविताये from “Atal Bihari Vajpeyi 56 Poems”
Note: अगर आप को अटल जी की बाकी कविताएँ पढ़ने की इच्छा हो तो बताए।
1. आओ फिर से दिया जलाएं (Aao fir se diya jalae hindi poem)
आओ फिर से दिया जलाएँ
अटल बिहारी वाजपेयी
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ…
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वतर्मान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ…
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ…
2. हरी हरी दूब पर (Hari hari doob par)
हरी हरी दूब पर
अटल बिहारी वाजपेयी
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं।
ऐसी खुशियाँ जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं।
क्कॉयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ?
सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?
सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी।
3. गीत नहीं गाता हूँ (Geet nahi gata hoo)
बेनकाब चेहरे हैं,
अटल बिहारी वाजपेयी
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलस्म,
आज सच से भय खाता
हूँ गीत नही गाता हूँ ।
लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ ।
गीत नहीं गाता हूँ ।
पीठ मे छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ ।
गीत नहीं गाता हूँ ।
4. न मैं चुप हूँ न गाता हूँ (Na mai chup hoo na gata hoo)
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पाँव
ओझल गाँव
जड़ता है न गतिमयता
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूँ
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ
समय की सदर साँसों ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,
बिखरे नीड़,
विहँसे चीड़,
आँसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूँ।
न मैं चुप हूँ न गाता हूँ…अटल बिहारी वाजपेयी
5. गीत नया गाता हूँ (geet naya gata hoo)
गीत नया गाता हूँ
अटल बिहारी वाजपेयी
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ
6. कौरव कौन, कौन पांडव (kaurav koun pandav koun)
कौरव कौन
कौन पांडव,
टेढ़ा सवाल है ।
दोनों ओर शकुनि
का फैला
कूटजाल है।
धर्मराज ने छोड़ी नहीं
जुए की लत है ।
हर पंचायत में
पांचाली
अपमानित है।
बिना कृष्ण के
आज
महाभारत होना है,
कोई राजा बने,
रंक को तो रोना है।अटल बिहारी वाजपेयी
7. दूध में दरार पड़ गई (Dudh me darar pad gayi)
ख़ून क्यों सफ़ेद हो गया?
अटल बिहारी वाजपेयी
भेद में अभेद खो गया ।
बँट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई ।
में दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी,
व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता ।
बात बनाएँ, बिगड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
8. जीवन बीत चला (Jeevan beet chala)
जीवन बीत चला
अटल बिहारी वाजपेयी
कल कल करते आज
हाथ से निकले सारे
भूत भविष्य की चिंता में में
वर्तमान की बाज़ी हारे
पहरा कोई काम न आया
रसघट रीत चला
जीवन बीत चला
हानि लाभ के पलड़ों में
तुलता जीवन व्यापार हो गया
मोल लगा बिकने वाले का
बिना बिका बेकार हो गया
मुझे हाट में छोड़ अकेला
एक एक कर मीत चला
जीवन बीत चला
9. मौत से ठन गई (Maut se than gayi)
ठन गई!
अटल बिहारी वाजपेयी
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई ।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं ।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा ।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर ।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं ।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला ।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए ।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है ।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
Maut se than gayi is the best of atal bihari bajpayee poem that you can read. There are 56 poems.